*** एहसास ज़िन्दा हैं …***
तुम्हें याद है,
जब पहली दफा हम
रेस्तरां में बैठे थे 
मैंने केबिन लेने का आग्रह किया था 
और फिर एक मूक सहमति बन गयी थी
हम दोनों के बीच ! .
खाया तो हमने
कुछ भी नहीं था उस दिन भी 
पर जो कुछ मिला वहाँ 
वो इक ज़िन्दगी से बढ़कर ही था .
इक अरसा हमने
वहीं उस छोटे से केबिन में 
इक- दूसरे में खोकर बिताया था। 
और जब बैरे को देने को
मैंने अपना बटुआ खोला था 
तुमने मुझे यूँ रोक रखा था ,
''नहीं, हम मिल- बांटकर खर्च भी करेंगे 
वो पैसा हो या हमारा  प्यार।''
मैं तब घूरा किया था तुमको
और… सच कहूं तो 
मुझे अब जाकर ,
फिर प्यार हो गया था तुमसे .
मैं तेरी बातों, और विचारों से
तब कितना हैरान हुआ था 
कि मैंने जो ढूंढ लिया है 
उस प्यार के काबिल 
है भी यहाँ कुछ कि नहीं।
पर तेरी हौसला- आफजाई से मुझे
तब जाकर पता चला था 
प्यार इसी को कहते हैं शायद 
जो इक पल में तुमने 
मेरे सारे वजूद पर बरसा दिया। 
वो जाने कैसा पल था 
जब घर पहुंचकर 
तुमने मुझे बताया, 
कि मारे खुशियों के 
तुमने पड़ोस के बच्चों को 
आइसक्रीम खिलायी थी।
वजह सिर्फ तुमने खुद को बतायी 
और खुशियाँ सबों में बाँट दी थी 
कि तुम्हें भी तुम्हारा 
प्यार जो मिल गया था।
फिर कई सारी बाधाओं को रौंद 
हमने प्यार को
एक पक्का मुकाम दिया  था
और इक- दूसरे के होने में 
हमने क्या कुछ नहीं झेला
...पर कहते हैं न 
 
कि हर बात की इक उम्र होती है 
वक़्त के साथ तो 
बातों में भी 
कोई बात नहीं रहती .
हमारा प्यार भी भरसक 
वक़्त के ऐसे ही पाश में 
उलझा- उलझा हुआ -सा था . 
...और अब जब ज़िन्दगी 
भौतिकताओं के भंवर जाल से 
हर शय को तुम पर आश्रित है 
तुमने उन्हीं होंठों से 
मेरी सिकुड़ी पंखों और
उनीन्दी आँखों में रोष भर दिया है . 
ये आहें अब जब 
अपनी चाहतों से आहत हैं।
तुमने उन्हीं लम्हों में आकर 
मेरी बेबसी को मेरा 
'शौक होना' बता दिया .
मेरे प्यार को ये शब्द 
तब उतना ही नया जान पडा था 
मेरे ज़ेहन में जितना 
तेरे लिए इसका 
घट जाना तय नहीं था .
आज दिल , दिल ही के हाथों आहत है 
क्यूंकि, ये प्यार और उसमे जीत जाने की
होड़ ही तो थी 
जहां हार-हारकर भी मुझे 
जीतते चले जाने का
बदगुमान होता रहा .
प्यार तो कहीं 
था भी या नहीं 
पर उसकी टूटती साँसें 
हर बात में 
आज भी जिंदा हैं। ***
--- अमिय प्रसून मल्लिक

 
 
4 टिप्पणियां:
Great work..as always !! keep going :)
Thank u, Agyaat g!
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