जब तक तुम 'तुम' थी,
मैं 'मैं' बना रहा।
जब मैं और तुम
'हम' बने,
हज़ारों नये सपने आ बसे।
'हम' बने,
हज़ारों नये सपने आ बसे।
पर जो सांसारिक प्रेम में सम्भाव्य था,
पहले कुछ ज़रूरतें आईं,
ख़ुद्दारी, चाहतें, शौक, उम्मीदें
सब भभक- भभककर फिर अपनी- अपनी जगह जगे
और जो नहीं होना था,
इन सारे अघोषित आंदोलनों में हमने
प्रेम को अनजाने ही
बेरहमी से शूली पर चढ़ा दिया।
पहले कुछ ज़रूरतें आईं,
ख़ुद्दारी, चाहतें, शौक, उम्मीदें
सब भभक- भभककर फिर अपनी- अपनी जगह जगे
और जो नहीं होना था,
इन सारे अघोषित आंदोलनों में हमने
प्रेम को अनजाने ही
बेरहमी से शूली पर चढ़ा दिया।
हाँ,
दूर से आनेवाली कुछ आवाज़ें
अकसर हसीन होती हैं
नज़दीकियां जो
सिमट के सैकड़ों दमित भाव बन जाए,
हमारे ही
अहम के किले पर
वो फिर पताका- सा लहराने लगता है।***
दूर से आनेवाली कुछ आवाज़ें
अकसर हसीन होती हैं
नज़दीकियां जो
सिमट के सैकड़ों दमित भाव बन जाए,
हमारे ही
अहम के किले पर
वो फिर पताका- सा लहराने लगता है।***
- ©अमिय प्रसून मल्लिक
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