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शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

***तुम पर 'गर न लिखी जाए ***



ये सारी कविताएँ
कैसे
कोई कविता हुई!

जब तक तुम
आकर इन्हें पढ़ नहीं लेतीं
और फिर कमोबेश
मेरे बेबुनियाद साथ की तरह
इनमें कोई
वाज़िब कमी नहीं निकाल देतीं!

कहो,
ये कौन सी कविता हुई
जो 'तुम' पर लिखी ही नहीं गयी,
और
जो कुछ लिखी गयीं
वो तुम्हें छूकर अपने मायने नहीं दिखा पाए!

तुमसे इतर,
कैसे किसी ने कभी
कोई अपनी कविता लिखी हो भला! ***

             - ©अमिय प्रसून मल्लिक

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