वो बुरी नहीं थी,
मैंने उसे
जी भरके ख़राब बनाया।
उसने
प्रेम सरीखी किसी चीज़ से पहले
मुलाक़ात नहीं की थी।
मैंने उसे
ऐसे कितने ही रास्ते सुझाए।
कि वो इन पर चलने को
अपनी नयी आबोहवा से
सवाल करने लगी।
प्रेम सरीखी किसी चीज़ से पहले
मुलाक़ात नहीं की थी।
मैंने उसे
ऐसे कितने ही रास्ते सुझाए।
कि वो इन पर चलने को
अपनी नयी आबोहवा से
सवाल करने लगी।
उसने तब उन मायनों को भी समझा,
जो आम भाषा में
हम और आप
नहीं समझ पाते हैं कभी।
जो आम भाषा में
हम और आप
नहीं समझ पाते हैं कभी।
वो समझने लगी थी फिर
कि उस पर
हज़ारों कविताएँ लिखी जा रही हैं।***
कि उस पर
हज़ारों कविताएँ लिखी जा रही हैं।***
- ©अमिय प्रसून मल्लिक
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