मंगलवार, 2 अक्टूबर 2007

ग़ज़ल














होकर तुमसे जुदा न रह पा रहा हूँ !
अपनी बेमायगी किसी से न कह पा रहा हूँ !!

चाहता है दिल वक़्त- बेवक्त साथ तेरा
अब ये तन्हाई बिल्कुल न सह पा रहा हूँ !

तह- ए- दिल से चाहा था तुम्हें प्यार करना
क्या जाने क्यूँ इसकी न तह पा रहा हूँ !

तेरा मुझको बेरुखी से क़यामत में छोड़ जाना
चाहता हूँ टूटना पर न ढह पा रहा हूँ !



-- "प्रसून"

3 टिप्‍पणियां:

  1. dard ko bayan kiya hai yaar...........hamesha ap kehte hai aaj main kehti hu..........laga jaise khud ko hi pad rahi hu...........

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  2. चाहता है दिल वक़्त- बेवक्त साथ तेरा
    अब ये तन्हाई बिल्कुल न सह पा रहा हूँ !

    sundar likha hai aapne

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  3. aap shishe se faulad ki baat karte ho
    dushmano se dosti ka aagaz arte ho
    mumkin nahi bevafa se vafa ka vada
    yon raat me suraj ki baat karte ho.

    maana ki mukaddar hai shishe ka tutana
    tut kar bhi chehra par dikha deta hai
    sabut shishe se dar kise lagata hai
    tuta hua shisha, sambhalkar chalna sikha deta hai.


    dr a kirtivardhan

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