ज़ख्म-ए-उल्फ़त से अब रंज ही रिसते हैं ।
खून के रिश्ते भी हो गए सस्ते हैं ॥
खून के रिश्ते भी हो गए सस्ते हैं ॥
क्यूं फिर नादाँ दिल चाहे कोई हमसफ़र
झूठ ही हो गए जब सारे रिश्ते हैं ।
भटक ही गया इस राह पर कमसिन
न समझा, यहाँ सारे दोमुंहे रास्ते हैं ।
दिल को अब दर्द का तोहफ़ा ही मुबारक़ हो
ये नज़राना उनका सब तेरे ही वास्ते हैं ।
जिन्होंने तबस्सुम को अपने अश्कों से भिगोया हो
वही तो 'प्रसून' जग में रोकर भी हँसते हैं।
- " प्रसून"
[ शब्दार्थ :-- ज़ख्म- ए- उल्फ़त= मुहब्बत का घाव; रंज= दुःख; नादाँ= नादान; कमसिन= कम उम्र का; वास्ते= के लिए; तबस्सुम= मुस्कराहट; अश्क़= आँसू ]
क्यूं फिर नादाँ दिल चाहे कोई हमसफ़र
जवाब देंहटाएंझूठ ही हो गए जब सारे रिश्ते हैं ।
भटक ही गया इस राह पर कमसिन
न समझा, यहाँ सारे दोमुंहे रास्ते हैं ।
बहुत खूब जी ..भाव इसके बहुत अच्छे हैं ..:)
thanx, ranjoo g!
जवाब देंहटाएंज़ख्म-ए-उल्फ़त से अब रंज ही रिसते हैं ।
जवाब देंहटाएंखून के रिश्ते भी हो गए सस्ते हैं ॥
kya khub zindgi ki sacchai likhi hai amiya ji.........bahut acchheeee