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मंगलवार, 23 अप्रैल 2013




*** मैं अकेला होता हूँ ***


मेरे पास पापा नहीं आते है 
मेरे पास मेरी माँ भी नहीं आती,
मैं उन सबसे जुदा- जुदा- सा हूँ,
या वे सब मुझसे, ख़फ़ा- ख़फ़ा - से हैं .

मेरे पास इक मैं रहता हूँ,
मेरे पास मेरी पत्नी रहती है,
वो भी ख़ुद में अकेली अकेली रहती है,
मैं अपनी यादों के बीच रहता हूँ .
मेरे अपने 'अपनों' के पास रहते हैं।
मैं मेरे अपनों को ढूंढता रहता हूँ .

मैंने रिवाज़ों से दूर, इक बसेरा बसाया है,
मैं ढकोसलों से दूर रहता हूँ 
मेरे दोस्त आज भी दोस्ती का दंश झेलते हैं,
इसलिए भी, मैं अपनों से दूर रहता हूँ .

मैं मूल्यों को झकझोर के रखता हूँ,
मैं अवसादों के बीच रहता हूँ,
मेरी माँ भी दुःख में मुझको 'वजह' बनाती है,
मैं उस घड़ी ही अपनी माँ के पास होता हूँ।

मैं मेरे पापा की चिंता का 'कारण' होता हूँ,
तब जाकर ही मैं उनका बेटा होता हूँ .
वो झेंप- झेंपकर मुझपर तरस खाते हैं,
मैं सिसक- सिसककर आहें भरता हूँ।

...और तब भी मैं अकेला ही होता हूँ,
माँ मेरी तब भी मुझ तक आ नहीं पाती है,
मैं पापा की भी बस बाट जोहता हूँ,
और वे सब मुझे देखकर आगे निकल जाते हैं,
मैं तब ज़्यादा हैराँ होता हूँ .

मेरे पास मेरी माँ भी नहीं आती है,
मेरे पास पापा भी नहीं आते हैं,..
मैंने रिवाज़ों से दूर, इक बसेरा बसाया है,
और मैं ढकोसलों से दूर रहता हूँ ,

इसलिए, मैं सबसे अलग अकेला होता हूँ,
मैं सबसे जुदा, अकेला रोता हूँ।

                 --- अमिय प्रसून मल्लिक

1 टिप्पणी:

Preeti 'Agyaat' ने कहा…

Behad khoobsoorat..dil ko chhoo lene wali rachna !