शनिवार, 7 दिसंबर 2013

*** ग़ज़ल ***





हँसने के लिए थोड़ा रोना ज़रूरी है!
नंगे पाँव को शूल चुभोना ज़रूरी है!!


जिन्हें हो हमेशा ख़ुशियों की ख़्वाहिश
उन्हें ग़म का एहसास होना ज़रूरी है


जब सपनों को चिलचिलाती धूप मयस्सर हो
तो उन्हें शोख़ अश्कों से भीगोना ज़रूरी है!


फ़रक़ अपने-ग़ैर का दिल में जमता कहाँ अब
ऐसे ही भेदभाव को आज डूबोना ज़रूरी है!


जहाँ बेचैन दिल को थोड़ा क़रार मिले
इस गोल दुनिया में ऐसा कोना ज़रूरी है!


ज़िन्दगी में बस 'पाने' की ही क़वायद न हो
कुछ पाने के लिए कुछ खोना ज़रूरी है! ***


                       --- अमिय प्रसून मल्लिक.

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