तेरी याद ने सबको ख़ूब रुलाया,
हाँ, तेरा ख़त फिर भी न आया !
जिस दिन चले गए यहाँ से तुम
हो गया सारा मंज़र ही गुमसुम
देखते रहे थे सब हद -ए- निगाह तक
हो गया सारा मंज़र ही गुमसुम
देखते रहे थे सब हद -ए- निगाह तक
बस! दादी रोयी थी अपनी आह तक,
कुछ ने तो तेरी तस्वीर देखकर ही
रिश्ते को भी ख़ूब भुनाया,
हाँ, तेरा ख़त फिर भी न आया !
क्या कशिश थी तेरी हर बात में
हँसते थे तुम जब बात- बात में
आज मुस्कराना सबका है दुश्वार
और 'रोना' बन गया हो जैसे खिलवाड़,
तेरी ख़बर की थी सबको ज़रूरत
पर डाकिए ने भी मुँह चिढ़ाया,
हाँ, तेरा ख़त फिर भी न आया !
जाने कहाँ गयी आज तेरी आगोश
ख़ुद में ही हैं सब खामोश
ख़तम हुआ है सबका धीरज
ज़िन्दगी हो गयी हो जैसे नीरस,
तेरी इक झलक को कुछ तो हैं अब भी बेताब
पर ज़ालिम दूरी ने सबको बहलाया
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