!!! कापीराईट चेतावनी !!!
© इस ब्लॉग पर मौजूद सारी रचनाएँ लेखक/ कवि की निजी और नितांत मौलिक हैं. बिना लिखित आदेश के इन रचनाओं का अन्यत्र प्रकाशन- प्रसारण कॉपीराइट नियमों का उल्लंघन होगा और इस नियम का उल्लंघन करनेवाले आर्थिक और नैतिक हर्ज़ाने के त्वरित ज़िम्मेवार होंगे.

मंगलवार, 11 मार्च 2014

*** दाग़ दर्द देते हैं... ***



माँ बताओ ,
घर की मोरियाँ
अब कौन मुस्कराकर धोता है!

कौन सँवारता है दालान पे पड़ी
उन बेतरतीब बोरियों को
कि जिसके हर रख- रखाव पे
तुम लोग नाक- भौंह सिकोड़ते थे
और तुम सबों का ज्वलंत तर्क
कि समेटने में घर की गन्दगियाँ
मैं और मेरा मन भी
कितना मलीन हो जाता है!

मैं तब अचानक ही
किसी सनक के वशीभूत
शौचालय के पीले पड़े पैन को
उस राख से रगड़ने लगता था
वो जो ज़मींदारी द्वार पे गायों के होने से
कभी उपलों से जलकर ही मिला था
और थक- हारकर फिर
उस चमक पे यूँ यकीन जमाता था
मानो, मन के सारे द्वेष धो लेने का
महँगा सा कोई पाउडर खरीदा हो!

तब घर में सिर्फ,
इक मेरा ही तर्क गौण हुआ करता था
नहीं होती हैं गन्दी,
कभी भी घर की नालियाँ
और ही बेसिन में थूकने से
कहीं कुछ जूठा होता है
और अपने ही नंगे हाथों से,
रगड़ रगड़कर मैंने
तुम सबों में,
ये सार्थक यकीन स्थापित करने को
हथेलियों में हज़ारों
सिलवटें मंज़ूर की थीं.

आज आभासी दुनिया ने ये भी कहा
कि दाग़ अच्छे हैं
पर इस गुसलखाने में बंद होकर
मैं आज जब भी उलझता हूँ
'हार्पिक' के साथ उसी पुराने जद्दोजेहद में
तो कोई अम्ल, ही कठोर क्षार
मिटा पाता है कुछ दाग़
जो वक़्त के साए में
हमने ख़ुद से गढ़े हैं
मानो, ज़िन्दा है दाग़ का दर्द आज भी
हर पल धधककर ज़ेहन में
कि जीवन- मूल्यों का
रसायन ही कुछ
माँ, आज ऐसा हो चला है!***


         --- अमिय प्रसून मल्लिक

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Shukriya Paulo jee!
A. P. Mullick

Preeti 'Agyaat' ने कहा…

सच है, जीवन-मूल्यों का रसायन ही कुछ ऐसा हो चला है ! बहुत सुंदर लिखा है, आपने प्रसून ! :)