*** मेरा वक़्त भी ले जाओ... ***
हो सकता है,
हों मेरे एहसास और भी नाहक
मुहब्बत की तेरी
मुझे पहले कभी आदत जो नहीं रही।
डरता नहीं मन मेरा
तुमसे मिली अचानक दूरियों से
योंकि
तुमसे दूर होने के
सारे सम्भाव्य पहले से तय थे
पर तक़लीफ़
इस दिल की
अपनी जगह ग़ैरवाज़िब भी नहीं।
तुम रहो न बेफ़िक्र
दूर वादियों मे बेमन से इतराते हुए
मैं तुम्हें पुकारने के
सारे उपायों को चीख के आज़माऊंगा।
कि रोज़ तुम पर
कोई न कोई कविता ही लिखी जाएगी,
पास लौटकर तुम
मुझसे मेरा जब तक ये वक़्त न छीन लो.***
- © अमिय प्रसून मल्लिक
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें