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शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

*** 'गर तुम आ सको ***



आओ,
इस तरह से आना
कि आकर न जा सको फिर!

तुमने आने का कहा था
तो
मैं इंतज़ार में रहा
कि तुम नहीं आती तो मैं क्या करता,
करता फूल, पत्ती, हवा, जुगनू से बात
फिर रात को
और घना होने को कहता।

कहता सिसककर
कि दर्द जब तक हरा न हो जाए
प्रेम परवान नहीं चढ़ता
और
दर्द के लौट आने की बात फिर कहकर
ख़ुद से ख़ुद को समझा लेता,
कि
दर्द हो, न हो अन्दर
कुछ लहू- सी बातों का प्रवाह होना चाहिए ज़रूर। ***
               - ©अमिय प्रसून मल्लिक

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