रात में ही
तुम पर लिखी जा सकती हैं
असंख्य कविताएँ।
जब
ये अंधेरा घना होगा
मेरे शब्द और हरे होते चले जाएँगे
शायद तभी तुम समझ सको
इनके कहने के
छुपे और जायज़ मायने को।
ये अंधेरा घना होगा
मेरे शब्द और हरे होते चले जाएँगे
शायद तभी तुम समझ सको
इनके कहने के
छुपे और जायज़ मायने को।
तुम फिर
अपनी सुबह के घोर उजाले में
दिन के लिखे
सारे ख़तों को बेहिसाब टटोलना
और करना दोहन
उनमें भी पनपी मेरी ख़ामोश कविताओं का।
अपनी सुबह के घोर उजाले में
दिन के लिखे
सारे ख़तों को बेहिसाब टटोलना
और करना दोहन
उनमें भी पनपी मेरी ख़ामोश कविताओं का।
हमेशा की तरह
मैं इसे भी
तुम्हारी कोई नयी बेरुख़ी मान लूंगा।
योंकि ऐसे हज़ारों ख़त
तुम तक
तो पहुँचे ही नहीं
जो प्यार से तुम पर लिखे गये थे।
मैं इसे भी
तुम्हारी कोई नयी बेरुख़ी मान लूंगा।
योंकि ऐसे हज़ारों ख़त
तुम तक
तो पहुँचे ही नहीं
जो प्यार से तुम पर लिखे गये थे।
और कविताओं का भी
कुछ ऐसा ही रहा हाल भरसक।***
कुछ ऐसा ही रहा हाल भरसक।***
- ©अमिय प्रसून मल्लिक
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