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मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

*** क्यों...! ***



फिर सोचता हूँ
कविता ही लिखकर होगा क्या!
ढेर सारी बातें निकलकर आएँगी
और कई उलझनों में
लिपटे हुए से
हम हज़ारों शिकायतें करेंगे,
हमारा अहम तब
मुँह फेरकर भी
मगर पताका की तरह लहरा उठेगा।
प्रेम पर ही
क्या होगा तब कुछ लिख लेने से
या जी लेने के लिए
क्या कुछ नया मिल जाएगा अचानक!
क्यों कविताओं की बात पर
परेशानियों से
नये मायनों को खोजा जाए फिर,
जब प्रेम का हर पहलू
ख़ुद में पसरकर एक किस्सा बने!
क्यों,
क्यों कविताओं को और भी
समझा जाए निचोड़कर
जब हर कविता
उसकी बात में
कोई नयी कहानी ही लगने लगे! ***

            -✍©अमिय प्रसून मल्लिक.

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