गुरुवार, 11 अक्टूबर 2007

'प्यार' पर पांच मुक्तक

साकी इस क़दर न पिलाओ कि खुमार छा जाए
इन आँखों को करना फिर इंतज़ार आ जाए
पीता हूँ प्यार भुलाने को, कहीं ऐसा न हो
कि इस ज़ालिम शराब पर ही प्यार आ जाए।



मैं जानता था, इस पाक मुहब्बत का भी कोई नूर निकलेगा
मेरी सादगी, मेरी दीवानगी का नतीजा ज़रूर निकलेगा
हाँ, उम्मीद नहीं थी जो औरों से सुना करता था
कि दिल टूटने का वही पुराना दस्तूर निकलेगा।



मेरे ज़ेहन में बस प्यार का नाम रहेगा
इश्क की दुनिया का हर बेहतर कलाम रहेगा
पाक मुहब्बत का है ये नापाक- सा तोहफ़ा,
कि गुमनाम नाचीज़ भी अब बदनाम रहेगा


मेरे दरवाज़े से निकलेगी मेरी मय्यत शहर में
कफ़न देने को बेताब होगी वो बाइज़्ज़त शहर में
चलो माना कि हो चुकी है अब पराए की अमानत
पर ख़ूब करेगी बवाल मेरी मुहब्बत शहर में।



प्यार के सारे किस्से तमाम हुए
प्यार में सच्चे जज़्बात भी आम हुए
प्यार को लग गयी प्यार की ही नज़र,
प्यार के सारे पहलू बदनाम हुए।


- "प्रसून"

4 टिप्‍पणियां:

  1. वैसे तो प्यार पर जितना लिखा जाए उतना ही कम है और सब प्यार की तरह ही खूबसूरत है दोनों रंग है इस में दुःख भी और सुख भी ..आपके लिखे सभी मुक्तक मुझे बहुत पसंद आए यह वाला विशेष रूप से पसंद आया
    प्यार के सारे किस्से तमाम हुए
    प्यार में सच्चे जज़्बात भी आम हुए
    प्यार को लग गयी प्यार की ही नज़र,
    प्यार के सारे पहलू बदनाम हुए।


    रंजू

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  2. मैं जानता था, इस पाक मुहब्बत का भी कोई नूर निकलेगा
    मेरी सादगी, मेरी दीवानगी का नतीजा ज़रूर निकलेगा
    हाँ, उम्मीद नहीं थी जो औरों से सुना करता था
    कि दिल टूटने का वही पुराना दस्तूर निकलेगा।

    mujhe yeh ansh bahut achha laga Prasson..BAHUT BADHIYA..

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