अबूझ पहेली को हमने ख़ूब बुझाया,
पर अपना हाल तूने नहीं बताया।
पर अपना हाल तूने नहीं बताया।
ठगा रहा था मैं बेजान देर तक
पर हुई न दिल पे कोई दस्तक।
हर बेबसी फिर क्यूँ भुला न जाता
इक कतरा भी 'ग़र रुला न जाता !
इक कतरा भी 'ग़र रुला न जाता !
रोने का न मुझे शऊर था
हाँ, दूरी ने हर सबक सिखाया,
पर अपना हाल तूने नहीं बताया।
टूट पड़ा था मैं ज्यों अम्बर से
बना अजनबी निकल के घर से
मिले सबों से हँसके रिश्तों के वास्ते
मिले सबों से हँसके रिश्तों के वास्ते
ग़ैर ही रहे थे तब सारे रास्ते।
रुका नहीं था तब भी मैं
हाँ, कदमों ने ख़ूब बहकाया,
पर अपना हाल तूने नहीं बताया।
यादों के पंख ख़ूब फड़फड़ाए
हम बेबस पर उड़ न पाए।
देर तलक दिल ने आह भरी थी
अश्रु- जंज़ीरों की नहीं कोई कड़ी थी।
दुःख- बन्धन से मैं जकड़ा था
हाँ, उलझन ने ही मुझे सहलाया,
पर अपना हाल तूने नहीं बताया।
- "प्रसून"
टूट पड़ा था मैं ज्यों अम्बर से
जवाब देंहटाएंबना अजनबी निकल के घर से
मिले सबों से हँसके रिश्तों के वास्ते
ग़ैर ही रहे थे तब सारे रास्ते।
bahut hi sundar likha hai aapne amiy .yun hi likhte rahe
shubhakamana ke saath
ranju