!!! कापीराईट चेतावनी !!!
© इस ब्लॉग पर मौजूद सारी रचनाएँ लेखक/ कवि की निजी और नितांत मौलिक हैं. बिना लिखित आदेश के इन रचनाओं का अन्यत्र प्रकाशन- प्रसारण कॉपीराइट नियमों का उल्लंघन होगा और इस नियम का उल्लंघन करनेवाले आर्थिक और नैतिक हर्ज़ाने के त्वरित ज़िम्मेवार होंगे.

रविवार, 18 नवंबर 2007

लापरवाही से ही...


लापरवाही से ही उसका कभी ख़याल कर लेना
जिसके जिस्मो- जान में बस चुकी हो तुम !


जब मुमकिन ना लगे किसी सपने का सच होना
अपना गुमान जिंदा रखना, किसी फैसले पे मत रोना !
तेरा हर फैसला क्यूँकि मुहब्बत की तस्वीर तो है
और ये गुमान इक नादान की बिगड़ती तकदीर तो है !


तेरा 'होना' ही सब कुछ है इस जहाँ में
हाँ, उसके लिए तेरी ज़ुबाँ हमेशा हो गुमसुम,
जिसके जिस्मो- जान में बस चुकी हो तुम !


तुम जानना मत उसके भीतर के उफान को
ना समझना कभी इक खामोश तूफान को !
बस, आती रहे बरवक़्त ये लहरों की मार
हो सके ताकि किसी तूफ़ान का उदगम बेकार !

जानो, ना जानो कभी नादान की मुहब्बत
बस, मुहब्बत का तूफ़ान तुझे हो मालूम,
जिसके जिस्मो- जान में बस चुकी हो तुम !


अपनी मादकता के महल में बेशक तू प्रहरी लगा ले
जब कोई तेरी मुहब्बत की आड़ में तुझको दगा दे !
किसी की शराफत को याद कर ना कोई मलाल रखना
खुद की चंचलता में ही खुद को निहाल रखना !


चहरे पर बस शिकन- ही- शिकन दिखने लगी
क्यूँकि कहाँ रही कोई मासूमियत, कहाँ रहा कोई मासूम,
जिसके जिस्मो- जान में बस चुकी हो तुम !



-- "प्रसून"


[शब्दार्थ: मुमकिन= संभव; उफान= उथल- पुथल; बरवक़्त = हमेशा; उदगम= उदय; प्रहरी= पहरेदार; मलाल= दुःख; निहाल= मशगूल; मादकता= नशा; शिकन= खिंचाव.]

1 टिप्पणी:

रंजू भाटिया ने कहा…

जब मुमकिन ना लगे किसी सपने का सच होना
अपना गुमान जिंदा रखना, किसी फैसले पे मत रोना !
तेरा हर फैसला क्यूँकि मुहब्बत की तस्वीर तो है
और ये गुमान इक नादान की बिगड़ती तकदीर तो है !

यह पंक्तियाँ विशेष रूप से पसंद आई मुझे !!