चाहे जहाँ में मैं भटकता ही फिरूं,
मगर मेरी नज़र बस तेरी ओर होती है !
सुनकर कभी देखना तुम मेरी आत्मा की आवाज़
और समझना, क्यों है इसमे इतनी तपिश !
तेरे कर्म-पथ की ना बाधा बनूँगा तुझे आवाज़ देकर
कर्म की असफलता की तुम ख़ुद महसूस करना ख़लिश !
और समझना, क्यों है इसमे इतनी तपिश !
तेरे कर्म-पथ की ना बाधा बनूँगा तुझे आवाज़ देकर
कर्म की असफलता की तुम ख़ुद महसूस करना ख़लिश !
क्योंकि प्रेम-भिक्षा मांगकर दिल खुद बेजार हो गया है
इसके भीतर का उमड़ता-घुमड़ता बादल बेकार हो गया है
तेरे प्रेम की विडम्बना ही है की कोई बूँद को तरसे
और तेरी इनायत से कहीँ बारिश घनघोर होती है,
तेरे प्रेम की विडम्बना ही है की कोई बूँद को तरसे
और तेरी इनायत से कहीँ बारिश घनघोर होती है,
चाहे जहाँ में मैं भटकता ही फिरूं,
मगर मेरी नज़र बस तेरी ओर होती है !
मगर मेरी नज़र बस तेरी ओर होती है !
मेरी आत्मा के हर पन्ने पर तस्वीर तेरी उभर चुकी है
अब इससे अलग प्रेम की क्या परिभाषा जानना चाहती हो !
सच भी है कि बस मेरा प्रेम है ये तेरे लिए
तेरा 'अपना' वो है जिसे तेरी रूह अपना मानना चाहती हो !
सच भी है कि बस मेरा प्रेम है ये तेरे लिए
तेरा 'अपना' वो है जिसे तेरी रूह अपना मानना चाहती हो !
क्योंकि प्रेम की परिभाषा का समंदर बहुत गहरा है
हर हारा हुआ खिलाड़ी इसके साहिल पे इसलिए तो ठहरा है !
इसकी लहरों की मार बेआवाज़ हो भले ही आज, पर
हर धड़कन की दबी आह इक दिन शोर होती है,
हर हारा हुआ खिलाड़ी इसके साहिल पे इसलिए तो ठहरा है !
इसकी लहरों की मार बेआवाज़ हो भले ही आज, पर
हर धड़कन की दबी आह इक दिन शोर होती है,
चाहे जहाँ में मैं भटकता ही फिरूं,
मगर मेरी नज़र बस तेरी ओर होती है !
मगर मेरी नज़र बस तेरी ओर होती है !
- "प्रसून"
2 टिप्पणियां:
hi prasoon.i read ur all poems.i think u r so creative .keep it up.pls see my blog-www.laghukatha.blogspot.com
बहुत अच्छे एहसास ........
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