सोमवार, 28 जनवरी 2008

दर्द कुछ नहीं होता है


जीवन के वे पल सुखद थे
इक पल में कई साल सजग थे
हमने पढी थी नयनों की भाषा
प्रेमोद्देश्य पर ज्यों दोनों असमर्थ थे।

मन से फिर क्यूँ छिटकी चिंगारी
सारे मंज़र क्यूँ ध्वस्त पड़े थे
तुमने ही पोषित किया था विचार,
दर्द कभी- कभी बड़ा पुष्ट होता है !

मौजूं हवाओं का साथ मिल था
मिले तुम भी उत्सुक- से मुझको
निखर पड़ा था फिर सारा यौवन
कुचला मचल- मचलकर हमने जिसको।

चकाचौंध की सौ साल उमर थी
नादान था यौवन का हर पहलू
पोर- पोर की उमंग ने समझा,
दर्द कभी तो रुष्ट होता है!

फूल भरे फिर जब आये मोड़
तुमने ही स्नेह- सम्पर्क बढाए थे
शूलों की सत्ता उफान चढी तो
पल में सारे भरम हटाये थे।

देखे दिल ने जो सपने चुनकर
वही दिवा में व्यस्त बने थे
आहों ने रो- रोकर महसूसा
दर्द बड़ा ही दुष्ट होता है।

जब छोटा था तुमसे दामन
मन ने मेरे सिसकी भरी थी
सारे अंतर्द्वंद्वों को फिर कुचलकर
अरमानों की सिगड़ी जली थी।

कहाँ कोई सुख बिखरा था
आंसू भी तो सूख पड़े थे
टीसों ने तब फिर यह जाना,
दर्द कुछ नहीं होता है।

-- "प्रसून"

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