मंगलवार, 8 अप्रैल 2008

तेरा ख़त फिर भी न आया


तेरी याद ने सबको ख़ूब रुलाया,
हाँ, तेरा ख़त फिर भी न आया !


जिस दिन चले गए यहाँ से
गया सारा मंज़र ही गुमसुम
देखते रहे थे सब हद -ए- निगाह तक
बस! दादी रोयी थी अपनी आह तक,


कुछ ने तो तेरी तस्वीर देखकर ही
रिश्ते को भी ख़ूब भुनाया,
हाँ, तेरा ख़त फिर भी न आया !


क्या कशिश थी तेरी हर बात में
हँसते थे तुम जब बात- बात में
आज मुस्कराना सबका है दुश्वार
और 'रोना' बन गया हो जैसे खिलवाड़,


तेरी ख़बर की थी सबको ज़रूरत
पर डाकिए ने भी मुँह चिढ़ाया,
हाँ, तेरा ख़त फिर भी न आया !


जाने कहाँ गयी आज तेरी आगोश
ख़ुद में ही हैं सब खामोश
ख़तम हुआ है सबका धीरज
ज़िन्दगी हो गयी हो जैसे नीरस,


तेरी इक झलक को कुछ तो हैं अब भी बेताब
पर ज़ालिम दूरी ने सबको फुसलाया,
हाँ, तेरा ख़त फिर भी न आया !


- "प्रसून"

8 टिप्‍पणियां:

  1. tujhe bahut din baad pad rahi hun..........sab pehle sa hi acha laga.........

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  2. WAH KYA KOOB LIKHA..
    APNE GURUJI KO dHANYAWAD DENA MAT BHULNA, JISNE TUMHE YAH SAB SIKHAYA

    Kisi ne kaha hai ki..
    Chido phir kabhi

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  3. जन्मदिन की बधाई और ढेरो शुभकामना.

    mahendr mishr

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