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शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

*** ग़ज़ल ***




कुछ दुआएँ गोया कर जाएँ असर फिर भी !
मिलाओ न तुम इक बार नज़र फिर भी !!

तेरे ख़यालों में रहता हूँ दिन- रात डूबा
तेरे ही साथ होकर बेख़बर फिर भी !

काँटों की राहें गवारा हैं हम रहनुमाओं को
ऐसी ही क्यूँ न हो तेरी रहगुज़र फिर भी !

ज़माने से पता है ज़ालिम ज़माने में सबको
पीता है हर कोई प्यार का ये ज़हर फिर भी !

अंजाम हर उल्फ़त का सुना है नापाक ही रहेगा
ऐसी आहों संग ही हो जाए गुज़र- बसर फिर भी ! ***

                                --- अमिय प्रसून मल्लिक

1 टिप्पणी:

Preeti 'Agyaat' ने कहा…

sundar, pyaari si ghazal
Prem ki tarah komal, naajuk alfaazon se labrez