शनिवार, 3 नवंबर 2018

*** 'तुम' ***



कविताएँ,
कभी भी लिखी जा सकती हैं
और उन्हें
पढ़ा भी जा सकता है
देर रात के स्याह सन्नाटे में!

बस,
वे 'तुम' पर लिखी जाएँ।***

            - © अमिय प्रसून मल्लिक

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