कह सकता था,
तुम्हारे चले जाने पर
जाने कितनी ही अबूझ कविताएँ...
तुम होती,
तो लफ़्ज़ों का मिजाज़ भी होता
और
पास सिमट के
हम ज़िन्दगी जिये जाने के सारे हुनर
हँस के आज़माते,
नहीं तो
चुन- चुनकर सहेजे
इन एहसासों में रखा क्या है!
'गर तुम नहीं हो
तो तुम पर लिख दी
फिर हज़ार कविताओं का ही क्या होगा!***
- © अमिय प्रसून मल्लिक
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-11-2018) को "धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3146) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
एक टिप्पणी भेजें