जाने क्यों
आज तुम पर
कोई कविता नहीं लिख सकी!
जब भी
तुम पर कुछ कहना चाहा,
या चाहा लिखना
कई अनकही बातें,
ढेरों अनसुलझी कहानियाँ
चलती रहीं
पूरे दिन ही मेरे ज़ेहन औ' ख़यालों में।
तुम पर कुछ कहना चाहा,
या चाहा लिखना
कई अनकही बातें,
ढेरों अनसुलझी कहानियाँ
चलती रहीं
पूरे दिन ही मेरे ज़ेहन औ' ख़यालों में।
कुछ नहीं सूझना भी
तुमपर लिखी जानेवाली
तब कोई कविता- सी लगती है,
तुमपर लिखी जानेवाली
तब कोई कविता- सी लगती है,
फिर सोचती हूँ,
जो कुछ लिखूंगी तुम्हें देखकर,
क्या वो
कोई नयी कविता होगी मेरी!***
जो कुछ लिखूंगी तुम्हें देखकर,
क्या वो
कोई नयी कविता होगी मेरी!***
- ©अमिय प्रसून मल्लिक
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