तेरा इश्क़ आज एहसासों का बेसुध मंज़र हो गया!
सीने पे जो फिरा कभी, हाथ वो गोया खंज़र हो गया!!
देखते रहे हद-ए-निगाह तक मुहब्बत की ख़ामोश खेती
दिल मेरा फिर, सूनी ज़मीन- सा तन्हा औ' बंज़र हो गया!
उस मुहब्बत को हम ग़लतफ़हमी में जिया किए अकसर
फिर उनके वायदों का साबूत वजूद ख़ुद जर्ज़र हो गया!
तुम भी रहे बेपरवाह, बस तुम्हारी यादों की मानिन्द
थम गए ख़यालात, और प्रेम जीते- जी पिंजर हो गया!***
--- अमिय प्रसून मल्लिक
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