!!! कापीराईट चेतावनी !!!
© इस ब्लॉग पर मौजूद सारी रचनाएँ लेखक/ कवि की निजी और नितांत मौलिक हैं. बिना लिखित आदेश के इन रचनाओं का अन्यत्र प्रकाशन- प्रसारण कॉपीराइट नियमों का उल्लंघन होगा और इस नियम का उल्लंघन करनेवाले आर्थिक और नैतिक हर्ज़ाने के त्वरित ज़िम्मेवार होंगे.
शनिवार, 22 नवंबर 2014
*** मैं नोहे पढता रहा... ***
तुमसे दूर बैठा
मैं अकेला ही मानो
अपने मरसिये में गुम था
गुदे हुए रहे तुमसे जब
मेरी ज़िन्दगी के
वो समस्त कल- पुर्ज़े
तेरी ख़ामोशी की
नोहे में लिपटी
प्रेम की
उस मलीन चादर तले.
जब ज़िन्दा रहा मैं
अपने रिश्तों के घिरे
उसूलों से;
और नाकाफ़ी रही
तुमसे,
मेरी नादानियों की चाहत
तुमने तब ही
मेरी मातमपुरसी को झुठलाकर
मुझे मेरा आइना दिखाया था.
मैं धुएँ में उठती
उस लौ की चाहत में
तुम्हें तब भी निहारा किया
कि किसी देवदूत के घराने से
भरसक तुम्हारी
भभककर इक लौ जगेगी
और रोशन हो जाएंगे
यकायक ही
शायद यहाँ प्रेम के
सारे उदासीन सन्दर्भ.
पर गुम होती
इन ज्वालाओं की मानिन्द
तुमसे मेरा सुर्ख- साहचर्य
स्वयं ही इक मातम- सा है,
कि तुम न तो इन हवाओं में
और न ही मेरे अन्दर की
उष्ण राख में
अपनी यादों- सी मौजूदगी
अब कभी
सम्भालकर दर्ज़ करोगी...!***
--- अमिय प्रसून मल्लिक.
(चित्र साभार: गूगल)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें