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सोमवार, 10 अगस्त 2015
*** ये बहनें आती हैं...***
कई- कई सालों ससुराल रहकर
किसी बड़े आयोजन में
हमारी बहनों का
अपने मायके आना होता है...
छोटी और कम समझदार उम्र में
उन्होंने ज़िन्दगी का,
लेखा- जोखा करना सीखा है,
और सीख लिया है,
चुप रहकर
अपनी मौजूँ इच्छाओं का
अपनी मर्ज़ी से ही हनन करना.
ये बहनें,
उस मिथक को तोडना भी,
इतनी साफ़गोई से आज सीख गयी हैं,
जिसको कभी न करके ही
उसने आज ये हुनर पाया है.
अपनी जिस आवाज़ को कुचल के
उन्होंने रिश्तों का ये मर्म चुना था,
वही बुज़दिली इन बहनों पे
आज फब्तियाँ कसती हैं.
इन लाचार शख़्सियतों का
अपने कथित गुमान के हाथों ही,
सैकड़ों दफे
मर्दन होता है,
और चुन दी जाती हैं वे
उनकी अपनी बलवती ज़रूरतों में,
उनके भीतर ही कुछ इतने गहरे,
जहाँ हमारे पापा की,
सिसक जाकर भी,
फफक पड़ती है भरसक.
और पापा सोचते हैं,
'तुम्हारी यादें तो 'मफ़लर' हैं,
जिसे लपेटकर,
मैं तुम्हारी चाह में
होता रहा हूँ गुमराह,
और महसूसता हूँ फिर
अपनी ही कंपकंपाती पिंजर में,
तेरी बेपरवाहियों की गर्मी,
और उचट जाता है,
प्रेम के होते दिवालियेपन में,
मेरी बदग़ुमानियों का,
पूरा समेटा भरोसा,
जिसे मैंने तुम्हारी आँखों से,
कभी समेटा था अपनी कोरों में.'
कुछ ऐसे ही,
इन आयोजनों में
बहनों की सिसकती पीड़ा
मेहमानवाज़ियों की झुण्ड में
अपनी कोख की ही
बलिवेदी चढ़ जाती है,
और माँ- बाप को झूठी तसल्ली का,
इस दफ़े भी ये बहनें,
इक सुन्दर और कचोटनेवाली,
याद देकर चौखट पार करती हैं.
जब कुछ दिनों में ही
लौट जाती हैं ससुराल ये बहनें,
तो कभी न ख़त्म होनेवाले दर्द का
एक मूक अध्याय जोड़ जाती हैं,
कि माँ की सिसकियों को देखकर
ये लाचार- सी हँसी थोपती हैं,
और लड़खड़ाते हुए पापा,
ख़ुद के गिरने की तस्वीर जीते हैं,
और बरसों का सहेजा,
उनकी बूढ़ी आँखों पर पड़ा,
चश्मा भी टूट जाता है...***
--- अमिय प्रसून मल्लिक.
(Picture courtesy: www.google.com with utmost thanks!)
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3 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर.....वाह..
Dil ko chu Lena wala, marmik chitran
Dil ko chu Lena wala, marmik chitran
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