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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

*** अस्पृश्य पद्यांश ***


उसने प्रेम किया था,
या कि उसे प्रेम जैसी
किसी सकुचाती भावना का
पाठ्य में ही भान कराया गया।
उसे अब जो लगता है
वो तब उस अनुभूति से
कुछ और ही अलग था।

जब वो अकेली इन सबमें उलझी
किसी क्षितिज पर
गुत्थियों के सुलझने के
व्यर्थ वहम में थी,
और उसे वहीँ प्रेम सरीखी
किसी वस्तु का
बेसबब पाठ पढ़ाया जा रहा था।

उसने अपने टीचर को देखा,
और उसकी आँखों में
यदा- कदा अट्टहास करती हुई
उसे उसकी अटखेलियाँ दिखीं,
और कभी आर्तनाद करती हुई
उसकी वेदना चुभी
पर जो पनपना ज़रूरी था;
पथ भ्रष्ट होकर भी
वो प्रेम किसी अध्याय में
खोखले वायदों से ज़्यादा
कभी गोचर न हुआ।

वो हैरत में इस दफ़े
इसलिए आयी,
कि उसे अपनी आँखों से
अप्रत्याशित- सा
यह सम्मान मंज़ूर नहीं था
और वो हाजमे की गोली से इतर,
बिना चबाते हुए,
अक्षर को निगलने भर लगी।
यों कि,
उसकी रातें अब वीरान थीं,
और रातों में कोई बात थी।

मिलन- बिछोह की इस पहेली में
वो इक मुक़म्मल उम्र तक
अकेली ही उलझती रही,
फिर उसकी रातें ख़ुद से
न कभी स्याह हुईं
और न दिन के उजास में
ख़ुद से कभी उसने
कोई साक्षात्कार ही किया।
उसके ढेरों रास्ते
चुने उसने अपनी ही रवानियों में
पर उनके सँवर जाने की
हर कोशिश ख़ुद ही
उसकी ज़िन्दादिली लीलती गयी।

चाहने लगी फिर वो सीखना,
'माँ' होने के सामाजिक सरोकारों को
और जीना चाहती थी ख़ुद से
अपनी शिराओं में ही
उस भावी डर को एक मर्तबा और
कि जिसके लिए
उसे अभी ही
अपनी उम्र से आगे निकलना था,
और करना था तय
इक संभावित पतिस्थिति के आगे
कैसे उसकी प्रतिच्छाया
लड़कर ही समर्पित हो, 'गर पड़े!

रात की रूह में
आज भी वही डर पसरा है,
ज्यों रात के ही गर्म बिछावन पे
वो आज, ...हाँ आज भी
भक्क् से जागती है,
और स्याह अँधेरे से होकर दो- चार
अपनी उनींदी आँखों में
किसी बेचैन लाचारी की
असह्य पीड़ा लेकर
कसमसाकर सिसकती हुई
ख़ुद को सौंपते हुए
गहरी नींद
सो जाने का सच भोगती है।***
       
        --- अमिय प्रसून मल्लिक.

5 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-02-2016) को "किन लोगों पर भरोसा करें" (चर्चा अंक-2259) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बड़ी बी की शर्तें - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Onkar ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति

Rabindra Kumar Kaushik ने कहा…

बढिया

Rabindra Kumar Kaushik ने कहा…

बढिया