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शनिवार, 3 नवंबर 2018

*** तुम्हारे जाने के बाद...***



सोचती हूँ,
बहुत कुछ बदल तो नहीं जाएगा!

तुमसे जो
मेरी रातें रोशन थीं,
बेतहाशा परेशान मेरे दिन में
जो तुम
हर पल उजाले जैसे थे,
उनको
मैं यहाँ अब अकेली
इतनी दूर से कैसे सहेजूँगी!

मैं कैसे भूलूंगी,
तुम्हारे साथ गुज़ारा हुआ
सौ- सौ बरस जैसा मेरा
एक भी लम्हा।

लौट आऊंगी फिर मैं,
अचानक,
लगता है, सब कुछ छोड़के
जो तुमसे दूर 'गर गुज़र न सके
सबसे लंबे
मेरे ये अनचाहे दिन।***

       
        - © अमिय प्रसून मल्लिक

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